दस्तक


रात के लगभग दो बजे थे, डॉ. वर्मा अपने घर में चैन की नींद सो रहे थेतभी उनके दरवाजे पर घुटनों तक मैली-कुचैली धोती तथा अधफटा कुर्ता पहने एक अधेड़ व्यक्ति दरवाजे को खट-खटा रहा थाउस व्यक्ति की खटखटाहट से डॉ. वर्मा की पत्नी मृणालिनी की नींद खुल गई। काफी देर तक वह उस आवाज को सुनती रहीं और अनुमान लगाती रहीं कि इतनी रात गए यह दस्तक कौन दे रहा है। आवाज भी थोड़ी-थोड़ी देर में रुक-रुक कर हो रही थी।


___ दरवाजा खटखटाने के बहुत देर बाद भी जब अधेड़ को किसी की पदचाप सुनाई ना दी तो उसके सब्र का बाँध टूट गया क्योंकि उसका बेटा अस्पताल में जिन्दगी और मौत से झल रहा था. वह उसे परिजनों के सहारे अस्पताल में छोड़कर डॉ. वर्मा को बुलाने के लिए आया था।


आया था। ___ अधेड़ यह सोचकर जोर-जोर से चिल्लाने लगा 'अरे साहब! मुझ गरीब पर रहम करो; मेरे बेटे को यदि समय पर इलाज नहीं मिला तो वह बेमौत मर जाएगा।' दरवाज खोलो साहब! 'मेरे बिरजू को बचा लोभगवान आपका भला करेगा, साहब! मेरे बिरजू साहब मर बिरजू को आपके सिवा और कोई नहीं बचा सकेगा।'


इस गराब का पुकार सुनला साहब। मेरी मदद करो, मैं जीवन भर आपकी सेवा करूँगा, मेरा बेटा अस्पताल में भयंकर दर्द से तड़प रहा है। परहा है। आप ही मेरे भगवान है, भगवान। मेरी मदद करें साहब। __ ऐसा कहकर वह फूट-फूट कर रोने लगा। __ मृणालिनी समझ गई कि उसका अंदाजा बिल्कुल ठीक निकला। सचमुच यह किसी पेसेंट के परिजन का विलाप है। परन्तु वह चुप रही और कोई होता तो उससे रहा ना जाता परन्तु मृणालिनी निष्ठुर हृदय थी। ममता से शून्य थी, इसीलिए एक पिता के करुण विलाप से उसका पत्थर जैसा कलेजा जरा भी नहीं पिघल सका। डॉ. वर्मा काफी थके हुए थे इसलिए वह गहरी नींद में थे। मृणालिनी नहीं चाहती थी कि उनके पति रात को भी मरीजों की देखभाल करें। इसलिए उसने जान बूझकर उन्हें जगाना उचित नहीं समझा। मृणालिनी, रात को डॉ. वर्मा के अस्पताल जाने की सख्त विरोधी थी। इस बात पर वह घर में अक्सर हंगामा करती रहती थी। पति पत्नी के बीच विवाद का सबसे बड़ा कारण यही थामृणालिनी चुपचाप बाहर से आने वाली चीख पुकार को सुनती रही। दूसरा कोई होता तो इस करुण क्रन्दन को सुनकर उसका हृदय पसीज जाता। परन्तु मृणालिनी के हृदय में जरा भी दया भाव ना था।उसे संतान भी नहीं थी


इसलिए बिरजू के पिता के दर्द की अनुभूति उसके भाव शून्य हृदय में तनिक भी उत्पन्न ना हो सकी। वह चुपचाप करवटें बदलती रही। डॉ. वर्मा एक जिम्मेदार डॉक्टर थेपेसेंट से उनका गहरा नाता था। उनका मृदुल व्यवहार पेसेंट के आधे रोग को दूर कर देता था। अपनी इसी विशेषता के कारण वह अपने पेसेंट के अत्यंत प्रिय डॉक्टर थे।


समाज के अन्य संबंधों की तरह मरीज और डॉ. का भी एक रिश्ता होता है। जो मेरे ख्याल से सभी रिश्तों से बढ़कर होता है। डॉ. व्यक्ति के लिए भगवान नहीं तो उसका दूसरा रूप अवश्य है। शायद इसी रिश्ते की विशेषता थी कि बिरजू के पिता की आवाज आखिरकार डॉ. के कानों तक पहुंच ही गई वे एक ही झटके में उठ बैठे। आँखें मींजते हए मणालिनी से बोले - 'मृणालिनी यह आवाज किसकी है?'


'मुझे क्या पता?' उसने रूखे स्वर में जवाब दिया। डॉ. वर्मा बोले, 'लगता है कोई पेशेंट सीरियस है' इतना कहकर वह पलंग से उतरकर दरवाजे के पास आ गए। डॉ. वर्मा उस अधेड़ की आवाज बड़े ध्यान से सुन रहे थे। मृणालिनी ने उन्हें टोकते हुए कहा___ 'सो जाइए, अभी रात काफी है।' लगता है इतनी रात गए कोई पागल घूमता-घामता आ गया है। भला साधारण आदमी इतनी रात गए क्यों रोएगा? वर्मा ने कहा - 'शट अप


डॉ. वर्मा ने कहा - 'शट अप मृणालिनी' वे पागल नहीं, किसी पेशेंट के परिजन है। मुझे अभी अस्पताल जाना होगा। मृणालिनी ने गुस्से में कहा - कोई भी हो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैंने कह दिया ना, आप इतनी रात में अस्पताल नहीं जाएंगे। 'जिद मत करो मृणालिनी' ये किसी की जिन्दगी और मौत का सवाल है। डॉ. वर्मा ने कहा। 'तो मरने दो ना, दो चार पेशेंट के नहीं रहने से, ये दुनियां खत्म तो नहीं हो जाएगी ना।' __ डॉ. वर्मा ने कहा – देखो। ये समय बहस करने का नहीं है। मैं इस समय कुछ भी नहीं सुनना चाहता। मुझे जाना ही होगा__ इतना कहकर वे आगे बढ़े, और मुंह धोकर तैयार हो गए। मृणालिनी से रहा नहीं गया, वह गुस्से से आग बबूला हो उठी, वह बोल पड़ी, तो आप नहीं मानेंगे? 


डॉ. ने कहा 'नहीं' पेशेंट को बचाना मेरा कर्तव्य है। मैं उसे मौत के मुंह में नहीं झोंक सकता। यदि उसे कुछ हो गया तो मैं अपने आपको माफ नहीं कर पाऊंगाअरे ! ऐसा भी कहीं होता है कि डॉ. घर में सुख की नींद सोए, और पेशेंट इलाज के अभाव में घुट-घुटकर अपना दम तोड़ दे।


तो क्या सारे हिन्दुस्तान के इलाज का ठेका आपने ही ले रखा है? तमीज से बात करो मृणालिनी, इस बात का जवाब तो तुम्हें तब मिलता, जब तुम्हारा कोई अपना इतनी रात गए, इस तरह से इलाज की भीख मांग रहा होता। डॉ. वर्मा ने कहा। आप मुझे बहुआ दे रहे हैं मृणालिनी तपाक से बोली। मैं बदुआ नहीं सच्चाई बता रहा हूँ और जाहिर है कि सच्चाई हरदम कड़वी ही लगती है, मीठी नहीं।


तो ठीक है जाइए' लेकिन मेरी भी एक बात ध्यान से सुन लीजिए। कल का सूरज निकलने पर एक ही प्राणी आपको मिलेगा या तो आपका पेशेंट या फिर, आपकी पत्नी मृणालिनी। डॉ. वर्मा ने कहा – देखो मृणालिनी तुम्हारी बातें निराधार हैं मैं इस समय वक्त जाया नहीं कर सकता, तुम्हें जो उचित लगे सो करो। मैं जा रहा हूँ इतना कहकर डॉ. वर्मा ने दरवाजा खोला। डॉ. साहब को बाहर देखकर अधेड़ को ऐसा लगा - जैसे अंधे को आंखें मिल गई हों उसने जल्दी से डॉ. साहब के पैर पकड़ लिए और रोने लगा। रोते- रोते उसने पूरी बातें बताई और बेटे की जिन्दगी की भीख मांगने लगाडॉ. साहब का बैग हाथ पकड़ते हुए बोला - डॉ. साहब उसे बचा लीजिए बिरजू मेरा इकलौता बेटा है।' डॉ. वर्मा ने जल्दी से अपनी गाड़ी निकाली और अधेड़ की पीछे बिठाकर अस्पताल की ओर चल पड़े। थोड़ी देर में डॉ. वर्मा और अधेड़अधेड़ का पुत्र दर्द से तड़प रहा था। पेशेंट के पास परिवार के अन्य लोग बैठे हुए थे। छुट्टी का दिन होने के कारण डॉ. भी अस्पताल में ना थे। डॉ. वर्मा ने पेशेंट को देखा, पेशेंट की हालत सचमुच नाजुक थी।


पेशेंट को इमरजेंसी वार्ड में भर्ती किया गया। फटाफट उसका उपचार शुरू हुआ। डॉ. वर्मा शहर के सबसे बड़े डॉक्टर थे, अतः उनका काफी दबदबा था। डॉ. वर्मा ने आवश्यकतानुसार पेशेंट की जांच वगैरह करवायी फिर कुछ दर्द निवारक इंजेक्शन दिए इससे बिरजू को बहुत राहत महसूस हुई। जांच से पता चला कि बिरजू की दोनों किडनी खराब हैं तथा उसके ब्लड में इंफेक्शन है


डॉ. वर्मा ने चटपट अपने कुछ सहयोगियों को काल कर अस्पताल बुला लिया। ब्लड ग्रुप पता करने के बाद शीघ्रतापूर्वक उसके शरीर का रक्त बदला गया। हालत गंभीर थी, इलाज बहुत महंगा था। बिरजू के पिता इतना महंगा इलाज कराने में समर्थ ना थेवे डॉ. वर्मा के आगे हाथ जोड़कर बोले - साहब बिरजू के इलाज में तथा उसके ऑपरेशन में कितना खर्चा लगेगाi


'यही कोई दो-तीन लाख' डॉ. साहब ने कहा तीन चार लाख लेकिन मैं इतना पैसा कहाँ से लाऊंगा? बिरजू के पिता ने कहा। डॉ. साहब ने कहा – 'अभी पैसों की चिन्ता छोड़ दो उसका प्रबंध हो जाएगा। अच्छा साहब इतना कहकर अधेड़ सामने पड़ी बेंच पर चुपचाप बैठ गया। बिरजू ऑपरेशन थियेटर में था, ऑपरेशन की लगभग सारी तैयारी हो चुकी थी। बिरजू के पिता बाहर चहल कदमी करते हुए ऑपरेशन के सफल होने की दुआ कर रहे थे। कुछ ही घंटों में ऑपरेशन कर किडनी प्रत्यारोपण कर दी गई। डॉ. वर्मा ऑपरेशन थियेटर से निकल चुके थे। बिरजू के पिता दौड़कर उनके सामने आए और बोले- सब ठीक तो है ना साहब हमारा बिरजू बच तो जाएगा ना साहब।


जाएगा ना साहब। ___ डॉ. साहब मुस्कराते हुए बिरजू के पिता के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले - आपका बिरजू ठीक हैऑपरेशन सफल रहा। अभी थोड़ी देर के बाद उसे होश आ जाएगाबिरजू के पिता ने भीगी पलकों से डॉ. वर्मा को धन्यवाद दिया और कहा कि आपने मेरे बिरजू को बचा लिया। आप मेरे भगवान हैं साहब. मैं आपका जीवन भर एहसान मानूंगा। _


डॉ. वर्मा ने कहा - मरीज को बचाना मेरा कर्तव्य है इसमें एहसान मानने जैसी कोई बात ही नहीं है। दो-चार दिन में वह पूरी तरह से ठीक हो जाएगा। चिन्ता की कोई बात नहीं है।


__ अच्छा मैं अभी घर जा रहा हूँ, सुबह ड्यूटी पर आऊंगा। इस बीच मेरे मित्र डॉ. अभय यहां पर रहेंगे। मैंने उन्हें सारा केस समझा दिया हैइतना कहकर डॉ. साहब अस्पताल से बाहर आए और गाड़ी निकाली तथा घर की ओर चल दिएi


थोड़ी देर पश्चात डॉ. साहब घर पहुंच गए। शाम का समय था, नौकरानी घर की साफ-सफाई कर रही थी, दरवाजा बाहर से खुला हुआ था। घर का दरवाजा खुला देखकर डॉ. साहब एक बारगी तो चौंक गए, फिर जल्दी-जल्दी अन्दर गए एक के बाद एक कमरा देखा, पूरा घर छान मारा पर मृणालिनी कहीं नजर ना आईडॉ. वर्मा बुरी तरह घबरा गए, तभी उन्हें बर्तनों की खटरपटर की आवाज सुनाई दी। डॉ. साहब दौड़कर आगे बढ़े देखा तो घर की नौकरानी सुरबाला कुछ गुनगुनाते हुए बड़ी तल्लीनता से बर्तन साफ कर रही थीडॉ. साहब थोडी देर चपचाप खडे रहे, फिर बोले क्यों सुरबाला जब तुम काम पर आई उस समय मालकिन घर पर थीं या नहींडॉ. साहब की पीछे से आवाज


डॉ. साहब की पीछे से आवाज सुनकर सुरबाला एकदम चौंक गईं, फिर बोली, नहीं साहब, जब मैं घर आई तो मालकिन घर में नहीं थी। मैंने सोचा वे अन्दर आराम कर रही होंगी। इसलिए मैंने आवाज भी नहीं लगाई चुपचाप अपने काम में जुट गई। डॉ. साहब आगे कुछ नहीं बोले, वे चुपचाप आकर ड्राइंग रूम में पड़े सोफे पर आकर बैठ गएi


डॉ. साहब अभी चुपचाप बैठे ही थे कि उनके पड़ोस में रहने वाली मिसेज श्रीवास्तव दौड़ी-दौड़ी आईं और हाँफते हुए बोलीं 'भाई साहब! आज मृणालिनी से आपका कुछ लड़ाई झगड़ा हो गया था क्या?' डॉ. साहब आश्चर्य चकित होकर बोले - क्यों? कुछ नहीं, मैं तो ऐसे ही जानना चाह रही थी, मिसेज श्रीवास्तव बोलीं। मेरी और मृणालिनी की क्या बात हुई ये सब आपको कैसे पता डॉ. साहब थोड़ा कठोर होकर बोले। भाई साहब ! आपको ये बात तो पता ही है कि मृणालिनी मेरी कितनी अच्छी दोस्त है। अपने सारे सुख-दुःख मेरे साथ बांटती है। परन्तु आज उसने मुझे कुछ भी नहीं बताया। मैं सुबह-सुबह मार्निंग वॉक से आ रही थी. मैंने देखा वह बहुत सारा सामान ऑटो पर उठाउठाकर रख रही थी। उसे इस तरह सामान रखता देखकर मैं आश्चर्य में पड गई। पहले तो मैं बहुत देर तक दूर से ही उसे देखती रही परन्त जब ना रहा गया तो उसके समीप गई और मैंने पूछ ही लिया कि इतनी सुबह-सुबह तुम कहाँ जा रही हो मृणालिनी, कोई खास बात है क्या?


इस पर वह चुप रही, फिर बोली - मेरे पति को समाज सेवा करने का बड़ा शौक है इसी शौक के चलते उन्हें रातदिन एक समान लगते हैं। ना घर में आने का समय है और ना जाने का। उनके लिए हर रिश्ते से बड़ा मरीज का रिश्ता है। मैं उनके काम में बाधक हूँ इसीलिए चाहती हूँ कि यहां से सदा-सदा के लिए चली जाऊँलेकिन ऐसा करके तुम अच्छा नहीं कर रही हो मृणालिनी मैंने उसे समझाते हुए कहाक्या अच्छा है और क्या बुरा, ये मैंने भली प्रकार सोच-विचार लिया है,i


इसलिए अब मझे अपने निर्णय पर कोई पछतावा नहीं है। मृणालिनी ने मुझे जवाब दिया। ___ मैंने कहा - गाड़ी बंगला, धन- दौलत नौकर-चाकर सब तो है तुम्हारे पास, आखिर क्या कमी है। इतना बड़ा निर्णय लेने से पहले इसका दुष्परिणाम भी जरा गंभीरता से सोचा तो होता। __ मृणालिनी कुछ भी सुनने को तैयार ना थी, उसका ऑटो चल पड़ा और मैं खड़ी-की-खड़ी रह गई। ___ भाई साहब, मैं तो कहती हूँ आप उसे ले आए। वह जितनी जिद्दी है उतनी भोली भीइस तरह बसा बसाया घर उजड़ने मत दीजिए मिसेज श्रीवास्तव ने कहा। कहा। आपका कहना तो ठीक है लेकिन शायद आप नहीं जानतीं मृणालिनी का बात-बात में जिद करना ये भी तो उचित नहीं है। अरे! मैं एक डॉ. हूँ मरीज की देखभाल करना मेरा फर्ज है। कोई पेशेंट जिन्दगी और मौत से लड़ रहा हों और मैं घर में हाथ पर हाथ रखे बैठा रहूं भला ऐसा कैसे हो सकता है। मैं जिन्दगी देता हूँ लेता नहीं।


मरीज को आप देखते हैं, देर सबेर आने-जाने में परेशानी आपको होती है फिर मृणालिनी क्यों एतराज करती है। मिसेज श्रीवास्तव ने जरा ठंडे स्वर में कहा। एतराज है तभी तो वह घर छोड़कर चली गई उसका कहना है कि रात में मैं मरीज को मरता हुआ देखकर भी बचाने नहीं जाऊँ।


तो फिर आपने क्या सोचा भाई साहब, मिसेज श्रीवास्तव ने कहासोचाना कैसा, मृणालिनी अपने कहा। आप यह घर छोडकर गई है और वह अपने आप ही आयेगी। डॉ. वर्मा नेकहा। मिसेज श्रीवास्तव ने आगे बोलना उचित न समझा, उन्होंने बस यही कहा कि भगवान उसकी बुद्धि बदल दे। वह अपना निर्णय वापस ले ले और घर आ जाए इतना कहकर वह चली गई।


मिसेज श्रीवास्तव के जाने के बाद डॉ. साहब उठे, ना जाने आज क्यों उन्हें काफी थकावट महसूस हो रही थी। साथ ही बड़े जोर से भूख भी लग रही थी। सुरबाला भी अब तक घर का सारा काम-धाम निपटाकर वापस जा चुकी थी। किचन में जाने की शक्ति डॉ. साहब में बिल्कुल ना थीकिचन से लेकर बाहर तक का काम संभालने वाला शम्भू कई दिनों से छुट्टी पर था। वह दो एक दिन बाद आने वाला था।


किचन से लेकर बाहर तक का काम संभालने वाला शम्भू कई दिनों से छुट्टी पर था। वह दो एक दिन बाद आने वाला था। डॉ. साहब अनमने मन से इधर- उधर आ जा रहे थे कि तभी दरवाजे की घंटी बजीघंटी सुनकर डॉ. साहब थोड़ा चौंके कि इस वक्त कौन आया होगा? उन्होंने यही सोचते-सोचते दरवाजा खोला, देखा तो सामने शम्भू खड़ा था।


शम्भू को देखते ही डॉ. साहब बोले अरे शम्भू! तुम, हाँ साहब मैं शम्भू बोला। लेकिन तुम तो जरूरी काम से बाहर गए थे नाएक दो दिन बाद आने वाले थे, फिर अचानक। क्या बताऊँ साहब, जिस काम के लिए गया था, उसमें मैं बहुत लेट हो गया


कोई खास बात थी क्या शम्भू? डॉ. साहब बोले, साहब मालकिन को तो मैं सारी बात बताकर गया था, आपको बताया तो होगा? शंभू ने नम्रतापूर्वक कहा। मालकिन ने तो मुझे कुछ नहीं बताया, चलो तुम्हीं अपने मुँह से बता देनालेकिन अभी नहीं बाद में, अभी तो मुझे बहुत जोर से भूख लगी है। कुछ गरमा-गरम खाने का प्रबंध करो। डॉ. साहब बोले। ठीक है साहब, शम्भू भोजन बहुत अच्छा बनाता था, डॉ. साहब की पंसदना-पसंद से भली प्रकार परिचित थाडॉ. साहब ने अपने घर के पिछवाडे ही उसे एक छोटा सा कमरा दे रखा थाशम्भू काम-धाम निपटाने के बाद अपने उसी कमरे में रहता था।


वह जल्दी से अपने कमरे में गया फटाफट नहाया-धोया फिर किचन में आ गया। सबसे पहले उसने साहब के लिए गरमा-गरम कॉफी बनाई, फिर भोजन बनाया। खाना बनकर डायनिंग टेबल पर लग चुका थाशम्भू ने साहब को आवाज दी, साहब भोजन तैयार है। डॉ. साहब कमरे से निकलकर खाने की टेबल तक आ गए। वे कुर्सी पर बैठ गए, शम्भू भोजन परोस रहा था। डॉ. साहब ने पास वाली कुर्सी खाली पड़ी थीI


भोजन परोसते-परोसते शम्भू बोला-साहब एक बात पूँछुपछो शम्भ, क्या पछना चाहते हो? डॉ. साहब ने गहरी साँस लेते हुए कहा। शम्भू पहले तो कुछ अटपटाया, फिर बोला, साहब मालकिन कहीं गई हैं क्या? यही समझ लो शम्भ, कहाँ गई हैं साहब? शम्भू धीरे से बोला। ये तो मुझे भी पता नहीं, डॉ. साहबI


मन अपने आपको धिक्कारने लगीसाहब सोचने लगी आदमी कितना स्वार्थी है। ज्यादा सोचने विचारने का समय अब उसके पास ना था अतः उसने अपने आपको संभालते हुए कॉलबेल बजाई डॉ. साहब गहरी नींद में थे अतः उन्हें घंटियों की अवाज सुनाई ना दी परन्तु एक के बाद एक कई लगातार बेल बजने के कारण शंभू की नींद अवश्य खुल गई। वह अपने कमरे से बाहर निकला, थोड़ा हिचकिचाते हुए डॉ. साहब के कमरे तक गया और डरते- डरते बोला - साहब जी, साहब जी, कोई इतनी रात गए कॉलबेल बजा रहा है, लगता है कोई आपसे मिलने आयाI


कौन है शम्भू ? डॉ. साहब थोड़ा सकपकाकर उठ बैठे। ___ पता नहीं कौन है? साहब ! घंटी पर घंटी बजाए जा रहा है। शम्भू बोला। __ अच्छा तुम ठहरो शम्भू मैं देखता हूँ कौन है? इतना कहकर डॉ. साहब तेज कदमों से चलकर मुख्य द्वार तक गए, कौन है? इतना कहते हुए दरवाजा खोला, देखा तो सामने मृणालिनी खड़ी थी। डॉ. साहब के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा, थोड़ी देर वह चुप रहे, फिर विस्मित स्वर में बोले - अरे! मृणालिनी, तुम इतनी रात गए, सब खैर कुशल तो है ना।


खैर कुशल ही तो नहीं है, मृणालिनी ने रोते हुए कहा, नहीं तो इतनी रात गए मैं आपके द्वार पर दस्तक क्यों देती। डॉ. साहब बोले - अच्छा, जल्दी बताओ, बात क्या है? __ मेरे भाई चिराग की हालत बहुत नाजुक है वह जीवनदान में इमरजेंसी वार्ड में भर्ती है। डॉक्टरों का कहना है कि उसे आप ही बचा सकते हैं। मृणालिनी ने सिसकियां भरते हुए कहा। मैं कोई भगवान तो नहीं मृणालिनी पर तुम्हारे भाई को बचाने की भरपूर कोशिश करूँगा, डॉ. वर्मा ने कहाऐसा मत कहिए मरीज के लिए डॉ. ही भगवान होता है । मृणालिनी ने थोड़ा संयत होकर कहा। ये तुम कह रही हो मृणालिनी, डॉ. साहब ने आश्चर्यचकित होकर कहामुझे माफ कर दीजिए, भाई के दुःख से जिस प्रकार आज मेरा मन दुःखी हो रहा है, अगर यही अनुभूति उस दिन होती तो मैं घर छोड़कर कभी नहीं जाती। ऐसा कहते हुए मृणालिनी के आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।


याद है मृणालिनी मैंने उस दिन तुमसे यही कहा था कि मुसीबत जब तक खुद पर नहीं आती तब तक व्यक्ति को उसका अनुभव नहीं होता। बिना अपनों के दर्द के व्यक्ति की आँखें नहीं खुलती। डॉ. वर्मा ने सोफे की तरफ इशारा करते हुए कहा दो मिनट बैठो मृणालिनी मैं अभी तैयार होकर आया। मृणालिनी कमरे में बैठे-बैठे ना जाने कहाँ खो गई। डॉ. वर्मा तैयार होकर आ चुके थे, मृणालिनी से बोले-चलो, जल्दी चलो, शम्भू अब तक गाड़ी गैरेज से निकाल चुका था। डॉ. साहब ने गाड़ी स्टार्ट की और थोड़ी देर में अस्पताल पहुंच गए। चिराग की हालत सचमुच नाजुक थीडॉ. साहब ने बिना वक्त जाया किए उसका गहन अध्ययन किया ऊपरी उपचार चल रहा था लेकिन बगैरI


ऑपरेशन के केस सुलझना संभव नहीं था। डॉ. साहब ने सारी स्थिति मृणालिनी और उसके पापा को बता दीलगभग एक सप्ताह बाद ऑपरेशन होना तय हो गया। मृणालिनी हरपल अपने भाई के लिए दुआ माँग रही थी। होते करते ऑपरेशन का दिन आ गया। सारी तैयारियाँ हो चुकी थीं। बस डॉ. वर्मा का ही इंतजार था। थोड़ी देर बाद डॉ. वर्मा आ गए, वह तैयार हाकर ऑपरेशन करने के लिए अन्दर जा ही रहे थे कि मृणालिनी आँखों में आँसू लिए प्रश्नात्मक भाव से डॉ. वर्मा के सामने खडी हो गई।


___ डॉ. वर्मा मृणालिनी की तरफ देखकर ढाढ़स देते हुए बोले, भगवान पर भरोसा रखो, ईश्वर चाहेगा तो सब ठीक हो जाएगा। इतना कहकर डॉ. साहब अन्दर गए ऑपरेशन शुरू हुआ कुछ ही घंटों में सफलता पूर्वक हो भी गया। ऑपरेशन के पश्चात डॉ. साहब बाहर निकले और मुस्कुराते हुए बोले - भाई आप लोगों की दुआ रंग लाई, ऑपरेशन सफल रहा, अब चिराग खतरे से बाहर है___ मृणालिनी को जैसे विश्वास ना हुआ, उसने डॉ. वर्मा से कहा - आप बिल्कुल सच कह रहे हैं नाहाँ, मैं बिल्कुल सच कह रहा हूँ मृणालिनी तुमने सही समय पर दस्तक दी थी, वरना कुछ भी हो सकता थामृणालिनी पश्चाताप की आग से जल रही थी, आज उसे सचमुच डॉ. भगवान का दूसरा रूप लग रहा था।