अंतस की ऊर्जा से जीवन सँवारे

 


       अंतस की ऊर्जा से जीवन सँवारे


 


भारतीय संस्कृति में छिपा   हुआ अद्भुत दर्शन जीवन के हर मोड़ पर हमें प्रेरणा देकर वास्तविक जीवन की चुनौतियों के लिए हमें तैयार कर रहा होता है। यह बात बहुतकम  लोग जान सके हैं । हमारी संस्कृति हमें प्रकृति से जोड़ती है ,सर्वप्रथम भारत के ही लोगों  द्वारा की जा रही गतिविधियों को इस सत्य से जोड़कर देखा जा सकता है कि मिट्टी में डाले गए बीज जब अंकुरित होते हैं तब कुशल किसान की देख रेख में वे एक लहलहाते खेत बन जाते हैं। किसान केद्वारा  की गई निः स्वार्थ  सेवा ,देख रेख और समय का पूरा ध्यान रखते हुए की गयी मेहनत ही हरे -भरे खेतो का वास्तविक सत्यहै।  जो मेहनत करेगा फसल पर उसीका अधिकार होगा।  


सही समय पर सही बीज का रोपण ही सही समय पर समृद्ध फसल देता है। किसान और फसल के इस सन्दर्भ से ही जुड़ा है हमारा मानव जीवन। यह सत्य है कि मनुष्य का जन्म पुण्य कर्मो का सुफल है ऐसे में हमारा यह मानवीय देह अत्यंत बहुमुल्य है। इस जीवन में संस्कार ही वह बीज है जिसके रोपने का उचित समय है बाल्यकाल तीन से सात वर्ष की आयु तक सुसंस्कारों का बीज रोपण किया जा सकता है। यह काल बालकों  में संस्कारों के स्थापन का सही समय होता है। एक कुशल किसान जिस तरह मिटटी को उर्वरक  बनाने के लिए खेत में निंदाई ,गुड़ाई करके उसे तैयार करता है ,फिर निर्धारित समय में बीज रोपता है फलस्वरूप उसे उत्तम कोटि का फसल प्राप्त होता है।  जो केवल अपने लिए ही नहीं वरन देश और विश्व कल्याण के लिए होता है।  सबको देकर ही किसान स्वयं ग्रहण करता है इसलिए किसान अन्नदाता कहलाता है।


मानव देह के भीतर अनंत शक्तियां निहित हैं जो ईश्वर प्रदत्त हैं। मानव जन्म ईश्वर का दिया हुआ एक सर्वोतम उपहार है जो इसे बहुमुल्य मानते हैं वे इसे सम्मान देते हैं ध्यान रखते हैं। तन और मन यह दो भाग हैं हमारे भीतर तन की शक्तियां सीमित  हैं और मन की शक्तियां  असीमित हैंइसलिए मन की शक्तियों को जागृत करने और उनके द्वारा अपरिमित खुशियां पाने के लिए मनुष्य को इन्हें समझना होता है। इनकी क्रियाशीलता और शक्तियों को समझे बिना हम जीवन में कुछ भी अर्जित नहीं कर सकते हैं। तन की शक्तियों को सुपोषण और शारीरिक व्यायाम ,सैर ,शारीरिक श्रम आदि से जगाया और प्राप्त किया जा सकता है ,परन्तु वहीं मन को सशक्त बनाना भी अनिवार्य है। इसके लिए हमें स्वयं प्रयास। पुरुषार्थ ,।,अभ्यास करना होता है। निरंतरता ही अंतस की छिपी हुई शक्तियों को जगा सकता हैं   ।


मानव मन में अच्छे संस्कार होते हैं जिन्हें अच्छे विचारों से पुष्पित ,पल्ल्वित  होने का अवसर मिलता है। एक  स्वस्थ्य दिनचर्या का होना हमारे जीवन में विशेष महत्व रखता है जिससे हम अपने शरीर ,मन ,और संवेदनाओं के लिए कुछ विशेष सजग  होते हैं ।


प्राणायाम ,योग,व्यायाम, सैर सत्संग आदि क्रियाऐ जल, प्रकाश और  खाद की तरह मन को सींचते। ईन,नियमित क्रियाओं के अभ्यास से हमारा मश्तिष्क और आत्मा खिल उठते हैं ,स्पूर्ति और नई शक्ति से भर जाते हैं। हम शरीर और मन से ऊर्जावान रहते हैं और हमारे वाणी ,व्यव्हार सब के सकारात्मक होते हम कुश होते हैं और सबको खुशियां देते हैं हमारे होतो पर सदा मुस्कान रहती हैं चेरा ओज -तेज से भरपूर होता है। हमें काम करने में आनंद की अनुभूति होती है।  राग ,द्वेष ,ईर्षा ,अहंकार ,लालच ,आलस्य ,क्रोध जैसे महाविकार जड़ से  मिट जाते हैं और हमारा जीवन ही बदल जाता है।अच्छे संस्कार हमारे भीतर  नकारात्मक शक्तियों  मिटाकर  सकारात्मक ऊर्जा में बदलते हैं।


भारतीय संस्कृति और शास्त्र विश्व मानवता के लिए यह कल्याण कारी  सन्देश सुनाता है कि "अपने अंतर मन की शक्तियों को बढाकर आप अपने आप को बदल सकते हैं आप बदलेंगे तो जग बदलेगा। परिवर्तन का यह विश्व्यापी सन्देश हमें प्रेरणा देता है कि अंतस की ऊर्जा से क्यों न हम अपना जीवन सवारें। "


 


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